सोमवार, 8 अप्रैल 2024

साक्षरता

साक्षरता विजय कुमार dc RK खुल्लर dc P K Das dc इन अधिकारियों का गजब का सहयोग रहा पानीपत के साक्षरता अभियान में। इन्होने साक्षरता को पहली प्राथमिकता दी । **मुख्य कार्यकर्ता कमल कौर, सबीता, दीपा, मंजीत राठी, अनिता, अंजली, डॉ सुरेश शर्मा, सत्य प्रकाश, राजीव, राजपाल दहिया, राजेश अत्रे, डॉ शंकर इसराना, डॉ जयपाल इसराना, शीलक राम , साथी वीरेंद्र शर्मा, शीश पाल, साथी श्याम लाल, 2 साल के डेपुटेशन पर गया था मैं सरकार की इजाजत से मगर मेरे hod ने मुझे भगौड़ा करार दे दिया और मेरी एसीआर खराब कर दी। इंक्रीमेंट रुकी मेरी इस वजह से। ***जत्थे तैयार किये उन्होंने माहौल बनाया **स्लोगन्स **Primar तैयार किया छपवाया दिल्ली की प्रेस से उस दौर के छपे primers में सबसे सस्ता था । प्रेस हमारे voluntarism से काफी प्रभावित हुई। बाद तक इस प्रेस से संपर्क बना रहा। *** कुल निरक्षरों के 21 % लोगों को ही साक्षर कर पाए उस दौर में। ** जत्था लेकर गए । चौपालाे में। क्लासों में महिलाएं ज्यादा आई। उनसे पहले दौर में बहुत कम सीधा संपर्क कर पाये थे। जो कहते थे लोग पढ़ना नहीं चाहते, इस बात को झूठा साबित किया उन महिलाओं ने। पहले महिलाएं चौपाल के सामने से जाते हुए घूंघट करके जाती थी, उनको चौपाल में चढ़ कर महिलाओं को चौपाल में मीटिंग करना सिखाया। कई महिलाओं के घूंघट स्टेज से ही खुलवाये। बहुत कुछ सीखा ***** 1992 में क्लोजिंग रैली 10--12 दिसंबर 1992 को की गई। बाबरी मस्जिद के गिराने का दौर था। बड़ी संख्या में मुस्लिम साक्षर आये थे। **** मुझे मेरे hod ने abscondar का मेरी acr में तगमा दिया। जो आज भी है मेरे पास। **** लोगों से संवाद के तरीके सीखे। ***** बहुत कुछ है दो साल के सफर में। 3 लड़ाई 1526---राजा इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच 1556---हेमू और अकबर के बीच 1761 -- अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच पानीपत की चौथी लड़ाई 1990..1992 के बीच कुछ बातें कुछ सवाल लोगों के बीच से निकल कर आए: 1 . एक किसान एक एकड़ में कितना गन्ना पैदा करता है ? 2 एक क्विन्टल गन्ने में कितनी चिन्नी बनती है ? 3 . कितना शीरा बनता है ? 4 . कितनी खोही बनती है ? 5 . इनसे आगे एक किलो शीरा से एक दारू की बोतल बनती है । 6 . इसी प्रकार खोही से कापी पेन्सिल और बिजली बनती है । क्या कोई किताब है ऐसी जिसमें इसका पूरा हिसाब किया गया हो ? 1990-92 में पानीपत की चौथी लड़ाई नाम से साक्षरता अभियान में ये सवाल लोगों ने उठाये थे । मैंने दो साल वहां काम किया था \ तब से उस किताब को ढूंढ रहा हूँ ? आपके पास हो तो एक कापी मुझे भी भेजना जी । कुछ अनुभव जो अभी भी दिमाग में घूमते रहते हैं:- पानीपत की चौथी लड़ाई सारे मिलकर करैं पढ़ाई शायद मतलौडा ब्लॉक की वर्कशॉप थी टीचर्स और अक्षर सैनिकों कि primar निरक्षरों की क्लास में कैसे पढ़ना पढ़ाना है । एक पाठ बरसात कैसे होती है इस पर था । कैसे सूर्य की गर्मी और पानी के वाष्पीकरण से बादल बनते हैं और बरसात होती है। एक अध्यापक महोदय ने कहा यह गलत है, बरसात तो हवन करने से होती है । हमारे साथी ने उसे और ज्यादा सहजता के साथ समझाया कि बरसात के पीछे क्या क्या वैज्ञानिक मसले हैं । मास्टरजी तो अड़े रहे। फिर हमारे साथी ने पूछा-मास्टरजी आपका बच्चा कौनसी क्लास में पढता है? जवाब था-- आठवीं में। साथी-- यदि उसके एग्जाम में यह सवाल आ जाय कि बरसात कैसे होती है तो आप उसे क्या सलाह देंगे मास्टरजी-- उसे तो मैं यही कहूंगा कि बरसात बादलों से होती है यही लिख कर आना। साथी से रहा नहीं गया और कहा- फूफा फेर आध घण्टे तैं म्हारा सिर क्यूँ खान लागरया सै। यूं ही याद आयी पानीपत की चौथी लड़ाई जो 1990 में शुरू की और अब तक जारी है । एक दक्ष ***** “जो विचारों मे जिंदा रहते है वह कभी मरते नहीं” अलविदा ड़ा शंकर लाल, सलाम, जिंदाबाद हरियाणा मे ज्ञान - विज्ञान के मूल्यों पर आधारित नवजागरण के सजग प्रहरी और कर्मठ एवं समर्पित, नए हरियाणा का स्वप्न्न देखने वाले, भारतीय सविधान मे प्रदत बराबरी (जाती व धर्म, महिला पुरुष,) देश मे बढ़ती आर्थिक गैर बराबरी, यानि आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक तौर पर फ़ैली गैर बराबरी के खिलाफ डटकर लड़ने वाले वैज्ञानिक समझ के व्यक्तितव के धनी ड़ा. शंकर से मेरा परिचय 17 सितंबर 1990 मे हुआ था जब मै 16 वर्ष का था। व एक ग्रामीण बच्चो की तरह ही संसार को समझता था। उनसे मुलाक़ात पानीपत की चौथी लड़ाई (निरक्षरता के खिलाफ जंग) के समय हुई जब वह हमारे स्कूल मे सभी बच्चों के साथ साक्षरता अभियान के लिए स्वेछिक रूप से जुडने की अपील करने आए थे। उस समय बस इतना आभास सा था की समाज मे जो हो रहा है उसमे कुछ गड़बड़ है हमे कुछ करना चाहिए। उस समय पानीपत की चौथी लड़ाई के अगुवा साथियो मे पानीपत जिले मे डाक्टर शंकर, ड़ा सुरेश शर्मा व राजेश आत्रेय हुआ करते थे। ड़ाक्टर साहब के उस समय के साथ ने जिंदगी के मायने, सोचने के तरीके, मान्यताएँ सभी कुछ बदल दिया। मेरे जैसे कितने ही साक्षरताकर्मी है जिनकी जिंदगी मे बदलाव आया है व वैज्ञानिक समझ पैदा हुई है। यह श्र्देय डाक्टर साहब का ही योगदान की आज हम देश, दुनिया मे कही भी रहे लेकिन समाज बदलाव व समाज मे वैज्ञानिक समझ के पैदा करने का प्रयास निरंतर जारी है। और जारी रहेगा। वैचारिक, मानसिक, दोस्त - गुरु डाक्टर शंकर लाल अलविदा सलाम, जिंदाबाद ****** बैंक में पैसे जमा करवाने का मसला विजय कुमार जी ने एक बैंक बताया हमने कई बैंकों से पूछा इंटरेस्ट कितना देंगे। जिसने ज्यादा दिया वहां करवाया। विजय कुमार जी ने खुशी जताई। ****** जी जान लगा दी थी साथियों ने साथी वीरेंद्र ने अपनी जान पर खेल कर लोगों की ज्यान बचाई उसी दौर में। ****** हरयाणवी भाषा जीवन शैली बन गयी। लोगों के बीच हिंदी या अंग्रेजी भाषा काम नहीं आई। हरयाणवी में बातचीत शुरू हुई। अब यह हरयाणवी मेरी रोजाना की भाषा बन गई है। **** खर्च का मसला लोगों ने बहुत मदद की तो खर्च बहुत कम हुआ और काफी पैसा बच गया। इस वक्त उसका बेहतर इस्तेमाल नहीं कर पाए । बैंको में पड़ा है ******** हरियाणा के साक्षरता आंदोलन के कुछ अनुभव व विचार सन 90 से लेकर सन 1998 तक चले साक्षरता अभियानों के अनुभव कुछ इस प्रकार हैं, इन्हें और ज्यादा गहराई तथा आलोचनात्मक दृष्टि से देखने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। 1) यह साक्षरता आंदोलन एक ऐतिहासिक आंदोलन के रूप में दर्ज किया जाएगा। 2) इसमें बहुत सारी जन गतिविधियां (मास एक्टिविटीज) आयोजित की गई जिनका लोक जन समूह (masses)पर व्यापक प्रभाव हुआ 3 ) इस प्रक्रिया ने कई नई संभावनाओं को जन्म दिया जिन्हें गहराई से समझा जाना चाहिए तथा महज नव साक्षरों के आंकड़ों तक सीमित करके इस प्रक्रिया को नहीं देखा जाना चाहिए 4) बड़ी संख्या में कला कर्मियों तथा स्वयंसेवी कार्यकर्ता संपर्क में आए तथा इस आंदोलन का हिस्सा बने 5) सामूहिकता तथा खुद की पहल कदमी जैसी प्रक्रियाएं उभरती दिखाई दे रही हैं या इनकी संभावनाएं पैदा हुई हैं 6) महिलाएं बड़े पैमाने पर इस आंदोलन में शामिल हुई तथा इस आंदोलन को अपना आंदोलन माना 7) पहले की अपेक्षा स्रोत व्यक्तियों की संख्या तथा उनके अपने क्षेत्र के काम में गहराई में विकास हुआ है 8) साक्षरता से संबंधित काफी पठन सामग्री तथा दूसरे सॉफ्टवेयर तैयार किए गए हैं 9) फंड्स के बारे में भी साक्षरता अभियान ने अपनी क्रेडिबिलिटी बनाई है 10) इसके बावजूद कई ऐसे अन देखे, अन पहचाने क्षेत्र हो सकते हैं जिनका पता विधिवत कंडक्ट की गई इंपैक्ट स्टडी से ही लगाया जा सकता है। 11) ग्रामीण जीवन की और शहरी जीवन की बारीकियों से जानकारियां सामने आई। 12) ग्रामीण महिलाओं को कैसे मोबिलाइज किया जाए इसके रास्ते निकाले 13) आईएस अफसरों के बारे कई भ्रांतियां भी साफ हुई। 14) गीत, रागनी, नाटक, ग्रुप वार्ता की अहमियत सामने आईं लोगों के बीच अपनी बात ले जाने के लिए । 15) पानीपत जिले के अनुभव ने रोहतक , जिंद, भिवानी, हिसार जिलों में भी अभियान चलाने का हौंसला दिया 16) बहुत सा साहित्य भी नव साक्षरों के लिए तैयार किया गया। 17) कई छोटी छोटी बुकलेट छापी गई 18) 19) मगर साक्षरता आंदोलन की कई सीमाएं भी रही जिनके चलते अपेक्षित सफलताएं नहीं मिल सकी । 1) जैसा कि सोचा गया था यह अभियान एक जन आंदोलन नहीं बन पाया हालांकि इसने व्यापक प्रभाव जरूर पैदा किया 2) इस अभियान का परिप्रेक्ष्य नीचे तक पूरी तरह से नहीं जा पाया साथ ही फीडबैक भी काफी कमजोर रहा 3) इस आंदोलन से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं की गई जिनमें पूरा या सफल न होने पर इस आंदोलन के रैंक एंड फाइल में भी निराशा पैदा हुई 4) मध्यम वर्ग के उन हिस्सों को जिन्हें इस अभियान में शामिल किया जा सकता था हम शामिल नहीं कर पाए 5) सांप्रदायिकता, जात-पात तथा लिंग भेद के मुद्दों पर ज्यादा संवेदनशीलता की जरूरत थी 6) अपने कैडर की निरंतर शिक्षा व प्रशिक्षण (परिप्रेक्ष्य के बारे में) की कमी भी रही 7) राज्य स्तर पर काम कर रही बीजीवीएस तथा जेड एस एस (जिला साक्षरता समिति) के बीच भी gaps रहे 8) टीएलसी के विभिन्न स्तरों पर वांछित क्षमताओं की कमी तथा TLC/PLC जरूरतों को समय रहते लक्षित करके कारगर कदम उठाने की कमी भी एक कारण रही। टीएलसी पीएलसी की नेचुरल overlaping भी विजुलाइज नहीं कर पाए 9) ज्यादातर शिक्षण संस्थाएं इस अभियान से अछूती रही या इनडिफरेंट रही 10) हम पार्ट टाइमर के लिए उनका स्थान, उनकी इस अभियान में भूमिका सुनिश्चित नहीं कर पाए । उनका बहुत कम समय भी बहुत कीमती था 11) ज्यादा योजना बद्ध और सोचे समझे ढंग से पानीपत का पीएलसी नहीं चलाया जा सका 12) आंकड़ों के दबाव ने इस अभियान की गुणवत्ता को काफी प्रभावित किया 13) महिलाओं के मुद्दों पर अलग से योजना बनाने में काम में कमजोरी तथा कमी रही 14) राज्य स्तर पर राजनीतिक प्रतिबद्धता की अखरने वाली कमी भी एक मुख्य कारण रही 15) अफसरशाही ने भी जनतांत्रिक ने ढंग से पार्टिसिपेटरी तौर तरीकों को अंगीकार नहीं किया इससे भी काफी असर पड़ा 16 यमुनानगर और अंबाला जिलों में चले साक्षरता के सरकारी कार्यक्रमों की कागजी सफलता को सरकारी मान्यता तथा प्रचार ने भी साक्षरता अभियानों के मनोबल पर प्रतिकूल असर डाला वास्तव में वहां के आंकड़े कहीं कम थे 17) पूर्ण कालिक कार्यकर्ताओं पर अभियान की निर्भरता और पूर्ण कालिक कार्यकर्ताओं की Wage dependence ने अभियान को व्यापकता प्रदान करने में प्रतिकूल असर डाला। स्वयं सेवी भावना (अक्षय सैनिक की) तथा सीपीसी की Wage dependence में एक अंतर विरोध निहित था। इसका और ज्यादा विश्लेषण किया जाना चाहिए 18) Self Sustainef आत्म निर्भर गतिविधियों का अभाव रहा जबकि Sponsered गतिविधियों पर निर्भरता ज्यादा रही। इसलिए शायद नीचे के स्तर पर इनीशिएटिव भी ट्रांसफर नहीं हो पाया 19) दलित वर्गों से सरोकार रखने वाले विषयों तथा मुद्दों की भी कमी खलने वाली रही इस अभियान में 20) इस प्रोजेक्ट की आधारभूत संरचना ही कमांड स्ट्रक्चर की रही। इस प्रकार के ढांचे में अति केंद्रीयतावाद के खतरे बहुत होते हैं 21) स्वयं सेवी संस्थाओं का ग्राम स्तर पर सांगठनिक ढांचा न होना भी एक कारण था अभियान के दौरान यह ढांचा खड़ा नहीं हो सका । रणवीर सिंह दहिया 19.5.1998 Move to folder... 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सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

निर्मला

 निर्मला

बयान अपनी जुबान से
मैं एक साधारण परिवार में पली लड़की
अपने जीवन को सार्थक बनाने चली लड़की अनगिनत सहन की है जीवन की ये कठिनाई गांव के ही मेरे जात भाइयों ने इज्जत लूटी चाही खेतों में काम करते दलित भाई दौड़े-दौड़े आए तभी मेरे ऊपर से जुल्म के बादल छट पाये
कालेज जाने लगी तो इन्होंने मेरा पीछा ना छोड़ा दूसरे गांव के लड़कों से सूत्र इन्होंने था जोड़ा
घर पर बात बताई तो कहते बंद करो पढ़ाई कॉलेज में वूमेन सेल बात वहां भी न बन पाई आशा और निराशा बीच मैंने एमए पास किया अच्छे नंबर आए मेरे थोड़ा सुख का सांस लिया नेट भी पास कर लिया पर नौकरी नहीं मिलती मां कहती है मेरे चेहरे पर क्यों हंसी नहीं खिलती कैसे खिले हंसी देशभक्तो मुझे बताओ तो  सही
क्या करूं आगे का राह मुझे दिखाओ तो सही
प्राइवेट स्तर पर मैंने बी एड भी कर ही लिया है
ये रिश्ते ढूंढते ढूंढते घरवालों का जी भर लिया है ना कहीं नौकरी मिल रही ना शादी हो रही मेरी क्या नहीं दिखती तुम्हें ये जो बर्बादी हो रही मेरी कई जगह बात तो चली दहेज को लेकर टूट गई
मर जाने को दिल करता है आस सभी छूट गई क्या करूं कहां जाऊं मेरी कुछ समझ न आ रहा
बूढ़े मात पिता हैं मेरे उनका दुख न देखा जा रहा
मेरी कहानी शायद मेरी अकेली की नहीं लगती
बहुत लड़कियां हैं जो मुझसे ज्यादा दुख में पलती
रणबीर

गुरुवार, 19 मई 2016

बहादुरी का नुस्खा


सहीराम
कायरों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही चली जा रही थी। हालांकि खुद कायर ऐसा नहीं चाहते थे कि उनकी संख्या बढ़े। वे कोई साधु-संत 
तो थे नहीं, जिनके बारे में एक हरियाणवी कहावत यूं है कि मोडा अपणा ही पंथ बढ़ावै। वे कोई भाजपाई जमात भी नहीं थे कि मिस 
कॉल तक से अपने संदस्यों की संख्या बढ़ाने में लगे रहें। कायरों की दिनों-दिन बढ़ती इस संख्या को देखकर बहादुरों के दिल में शोले 
धधक रहे थे और उनकी बाजुएं फड़कने रही थी। पर बाजुएं फड़काने का फायदा कोई नहीं हुआ। क्योंकि हाथ में तलवार ना हो तो बाजुओं 
का फड़कना, आंख फड़कने से ज्यादा महत्व नहीं रखता। 
पर तलवार नहीं तो क्या, उनके पास जुबान तो थी। सो तलवार की बजाय वे कायरों के खिलाफ जुबान ही चलाने लगे। जुबान के बारे में 
कहा जाता है कि उसमें कोई हड्डी तो होती नहीं, सो उसे चाहे कैसे ही पलट लो। इससे जुबान से फिरनेवाले आखिर में विजयी साबित 
होते हैं और जिसे मर्द की जबान वगैरह कहा जाता है उसकी पोल खुल जाती है और वे पिट जाते हैं। वैसे भी जमाने में यह कहावत तो 
मिलती है कि कलम तलवार से ज्यादा मार करती है, पर जुबान तलवार से ज्यादा काम कर जाए, ऐसी कोई कहावत नहीं मिलती। 
अलबत्ता यह जरूर कहा जाता है कि तलवार का घाव भर जाता है,पर जुबान का दिया घाव नहीं भरता। भाई ज्यादा प्राब्लम हो तो 
डायबिटीज वगैरह चैक करा लेना चाहिए।
वैसे बताते हैं कि पहले तलवार ज्यादा कारगर ढ़ंग से चलानेवालों को ही राज मिलता था, पर आजकल राज उनको मिलता है जिन्हें 
जुबान ज्यादा कारगर ढ़ंग से चलानी आती है। इधर के चुनावों में यह साबित भी हो गया कि जुबान चलानेवालों से कलम चलानेवाले भी 
हार जाते हैं। पर ऐसा भी नहीं है कि इन जुबान चलानेवालों को तलवार चलानी नहीं आती। गुजरात के दंगों में वे यह साबित कर चुके हैं 
कि झुंड में हों तो ये तलवार, छुरे वगैरह भी खूब चला सकते हैं। 
खैर बहादुरों ने मौका देखा और उन्होंने तलवार चलाने की बजाय जुबान के कारगर हथियार का ही इस्तेमाल किया और वे कायरों की 
लानत-मलानत करने लगे। बात बढ़ती देखकर एक दिन प्रदेष के कायरों का एक प्रतिनिधिमंडल बहादुरों के सिरमौर बनने की कोशिश कर 
रहे मंत्री महोदय के पास जा पंहुचा। पर आश्चर्य किंतु सत्य की तरह मंत्रीजी ने उनके आने का सबब जानने से पहले ही उनकी प्रषंसा
करनी षुरू कर दी। बोले-तुम बहादुर हो। जैसे वे उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए बहला-फुसला रहे हों। पर कायर उन पार्टियों 
के नेताओं की तरह तो थे नहीं, जो चुनाव के वक्त फिसलकर उन्हें फुसलानेवाली बहादुरों की पार्टी में चले गए थे। शायद इसीलिए कायरों 
के प्रतिनिधिमंडल को कुछ समझ में नहीं आया। 
पर जी-कायरों के प्रतिनिधिमंडल ने कहा-आप तो कह रहे थे कि हम कायर हैं। हमें भी यह सुविधाजनक लगा तो हमने भी मान लिया 
था कि हम कायर हैं। पर अब जब मैं कह रहा हूं कि तुम बहादुर हो, तो तुम्हें अब भी बिना चूं-चपड़ किए यह भी मान लेना चाहिए कि 
तुम बहादुर हो। अच्छा बताओ किसलिए आए? जी जब आपने हमें कायर कहा तो कायदे से तो हमारा खून खौलना चाहिए था, वैसे ही 
जैसे जब आप हिंदुओं को कायर कहते हैं तो उनका खून खौलने लगता है। बहादुर मंत्री ने सोचा चलो लाइन पर आ रहे हैं। उन्होंने कहना 
चाहा कि हम तो हिंदुओं को कायर कहते ही इसलिए हैं कि उनका खून खौले और हम अगला नारा लगा सकें-जिस हिंदू का खून ना 
खौले, खून नहीं वह पानी है। 
पर कायरों ने बहादुर मंत्री को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया। यूं कहने को यह भी कहा जा सकता है-खून है यार, चाय तो है नहीं, 
कितना खौलाओगे। और यह कोई चाय पर चर्चा भी नहीं थी। फिर हाई बी पी की शिकायत लोगों में वैसे ही बहुत बढ़ती जा रही है। खैर, 
कायर कह रहे थे- तो जी, जब आपने हमें कायर कहा तो हमें बड़ी षर्म आयी-कायरों ने एक सुर से कहा-हमने सोचा लानत है हमारे 
कायर होने पर। बहुत सोच-विचार के बाद हमने तय किया कि चलो चलकर आपसे बहादुरी का नुस्खा पूछते हैं और बहादुर हो जाते हैं। 
पर अब तो आपने खुद ही मान लिया कि हम बहादुर हैं तो अब जरूरत नहीं रह गयी है बहादुरी का नुस्खा जानने की। फिर भी अगर 
आप बता दें कि आप बहादुर कैसे बनें तो यह नुस्खा हमारे आगे कभी काम आ सकता है। तो जरा बताइए ना सीने को फुलाकर छप्पन 
इंच का कैसे किया जा सकता है?
बहादुरी का नुस्खा-मंत्री महोदय को हंसी आ गयी-बहादुरी का क्या नुस्खा होगा! और छप्पन इंच का सीना लेकर तुम्हें कौन सा प्रधानमंत्री 
बनना है! जी नुस्खा तो जरूर होगा-कायरों ने कहा-क्योंकि थोड़े ही दिन पहले आप खुद ही कह रहे थे कि मैं तो एक बेचारा सा मंत्री हूं-
स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू नहीं कर सकता। पर फिर जब आपने हमें कायर कहा तो हमें लगा कि आपके पास जरूर कोई नुस्खा 
है जो इतनी जल्दी आप इतने बहादुर बन गए। हालांकि अब छप्पन इंचवालों का सीना भी छप्पन इंच का कहां रहा! दिखाई तो नहीं 
देता। 
बहादुर मंत्री को इस बात पर गुस्सा तो बहुत आया कि जब उनकी बहादुरी के इतने चर्चे हो रहे हैं तब भी ये लोग उनके बेचारेपनवाला 
बयान याद दिलाना नहीं भूल रहे और प्रधानमंत्री के छप्पन इंचवाले सीने पर सवाल उठा रहे हैं। पर फिर उन्होंने जज्ब किया और बोले-
बहादुरी का ऐसा कोई नुस्खा नहीं होता। हालांकि वे चाहते तो यह कह सकते थे कि मेरी पार्टी में आ जाओ और इंस्टेंटली बहादुर बन 
जाओ-इंस्टेंट कॉफी की तरह। पर कायर तो जैसे नुस्खा पाने पर अड़े हुए थे, जैसे उन्हें बहादुरी का नुस्खा नहीं किसी खजाने की चाबी 
मिलनेवाली थी। 
सो वे बोले-नहीं जी ऐसा कैसे हो सकता है,नुस्खा तो जरूर होगा। वैसे अगर आप हमें वक्त पर यूरिया दे देते तो हम बहादुर हो सकते 
थे। हमारी कपास खरीद लेते, धान खरीद लेते तो हम बहादुर हो सकते थे। पर आपने हमें बहादुर बनने का मौका दिया ही नहीं। हमें 
लगा कि शायद बहादुर बनने का आपका नुस्खा यह है ही नहीं।
कायर बता रहे थे-तो सही नुस्खा तलाशने के लिए हम मिस कॉल देकर आपकी पार्टी के सदस्य भी बने। हमें लगा कि षायद यही वह 
नुस्खा हो। क्योंकि आपकी पार्टी में तो सब बहादुर ही बहादुर हैं। हमेषा देषभक्ति-देषभक्ति रटते रहते हैं, विरोधियों को देषद्रोही बताते 
रहते हैं, हमेषा पाकिस्तान और चीन को ललकारते रहते हैं। इस पर बहादुर मंत्री ने कहना चाहा कि बेवकूफो ऐसा हम सिर्फ विपक्ष में 
रहकर ही करते हैं। राज आने के बाद तो हमने सबसे पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को ही आमंत्रित किया और चीनी राष्ट्रपति को तो 
हमने साबरमती के तट पर झूला झुलाया और अब हमारे प्रधानमंत्री खुद वहां झूला झूलने गए हैं। मतलब व्यापार की बात करने गए हैं। 
पर यह बात उन्होंने कही नहीं। सोचा यह उंची राजनीति इनके पल्ले थोड़े ही पड़ेगी।
उधर कायरों का प्रतिनिधिमंडल कह रहा था-पर जी मिस कॉल से आपकी पार्टी की सदस्यता लेकर भी बात कुछ बनी नहीं। सो 
पाकिस्तान और चीन की सीमा पर तो अपने बच्चों को भेज दिया और खुद रामजी-रामजी रटते रह गए। पर राम भी राजी ना हुआ और 
नाराज होकर हमें पीट और गया। कभी बारिश की मार मारी, कभी ओलों की और हम रह गए कायर के कायर। अब लगता है कि कोई 
और नुस्खा होगा बहादुर बनने का। बताइए ना क्या है वो नुस्खा-कायर पूछ रहे थे। नहीं, नुस्खा तो कोई नहीं है-बहादुर मंत्रीजी अब 
सचमुच परेशान होने लगे थे। उनकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। नहीं होगा तो जरूर-कायर कह रहे थे- पर आप उसे सात तालों में 
बंद करके रखे हुए हैं। पर वह काला धन थोड़े ही है, जो सात तालों में बंद करके रख रहे हैं। वैसे जी अगर आप काला धन विदेश से 
लाकर अगर पंद्रह-पंद्रह लाख हमारे खाते में जमा करा देते, जैसा कि प्रधानमंत्री ने वादा किया था तो हम तुरंत बहादुर बन जाते। पर 
लगता है वह नुस्खा तो आप ही भूल गए। फिर भी कोई और नुस्खा होगा बताइए ना क्या है वो नुस्खा? 
नहीं नुस्खा क्या है-बहादुर मंत्री ने कहा-रही काले धन की बात तो चुनावों में ऐसी बात कही ही जाती है, हमारे अध्यक्षजी ने कह तो 
दिया। देखो जी-कायर कह रहे थे-हमने अपनी तरफ से यह नुस्खा तलाशने की बड़ी कोषिष की। पर हमारे बच्चों ने बताया कि गूगल देव 
भी यह नुस्खा नहीं बता पा रहे। तो हमने सोचा जैसे आपने गुजरात में बहादुरी दिखाई थी, थोड़े दिन पहले मुजफ्फरनगर में दिखाई थी 
और भी वक्त-वक्त पर जगह-जगह आप दिखाते ही रहते हैं, क्यों ना वही नुस्खा हम भी आजमा लें। पर फिर हमें लगा कि हम यह 
नुस्खा आजमा कर किस पर अपनी बहादुरी दिखाएं। जिन पर आप दिखाते हों तो वे भी बेचारे हम जैसे ही हैंःगरीब-गुरबा और लुटे-पिटे 
लोग। उनकी यह दलील सुनकर बहादुर मंत्री को बड़ा गुस्सा आया-मौका चूक गए ना कमबख्तो! अगर यह काम कर देते तो मेरे भी नंबर 
बढ़ जाते, जैसे संजीव बालियान के बढ़े। पर बहादुर मंत्री अपने गुस्से को दबा गए। 
उधर कायर कह रहे थे-वैसे यह नुस्खा क्या है-नफरत ही है ना! आप भी नफरत फैलाओ, हम भी नफरत फैलाएं, फिर तो नफरत ही 
नफरत हो जाएगी। सो हमने इरादा छोड़ दिया। फिर सोचा आपकी पार्टी के सांसदों और मंत्रियों की तरह अपने विरोधियों को गालियां देने 
लगेंगे तो अवष्य ही उन्हीं की तरह बहादुर बन जाएंगे। पर हम किसे गालियां देते। हम ना तो महंत आदित्यनाथ हैं, ना साध्वी निरंजन 
ज्योति। 
हम तो गृहस्थ हैं-कायर कह रहे थे-हम कोई साधु-संत थोड़े ही हैं। फिर साधु- संत भी आपकी पार्टीवालों जैसे जिन्हें रामजी की उतनी 
चिंता नहीं, जितनी सत्ता की है। बल्कि हम तो जी गिरिराजसिंह जैसे भी नहीं हैं कि विरोधी पार्टीवालों को गाली देने लगें। सो अपने को, 
अपने बीबी-बच्चों को और अपनी सरकार को ही कोसने लगे। क्या? सरकार को कोसने लगे? हां जी, और क्या करते! पर हम सच 
बताएं जी हम आपके अरूण शौरीजी और जेठमलानीजी जैसे बहादुर तो नहीं हैं ना कि अपनी सरकार की ही धज्जियां उड़ाकर रख दें। सो 
बस मन ही मन कोस कर रह गए। बहादुर मंत्रीजी एकदम बिफर उठे-सरकार को कोसते हो और बहादुरी का नुस्खा पूछने मेरे पास आते 
हो। भागो यहां से कायरो और जाओ मरो! अचानक कायर खुशी से उछल पड़े-मिल गया-मिल गया! क्या-बहादुर मंत्रीजी एकदम 
आश्चर्यचकित थे। बहादुरी का नुस्खा मिल गया-कायरों ने कहा-और क्या!
सहीराम

मंगलवार, 10 मई 2016

प्रेरक कहानी

प्रेरक कहानी
सुनो कहानी तुम्हे सुनाऊ,बात पते की तुम्हे बताऊ।
शिक्षा प्रेरक इनका नाम, शिक्षित करना इनका काम।
अत्याचार ये सहते रहते, बिन वेतन के करते काम।
शिक्षा प्रेरक इनका नाम, शिक्षित करना इनका काम।
गुलामी का ये जीवन जीते ,नहीं किसी से ये व्यथा कहते।
शिक्षा प्रेरक है लाचार, इसीलिए शोषण करती है सरकार।
कायरता का ये जीवन जीते ,नहीं बात ये हको की करते।
शिक्षा प्रेरक है गुलाम, इसीलिए नहीं सुनता कोई इनकी बात।
शिक्षा प्रेरक इनका नाम, शिक्षित करना इनका काम।
भगवत कौशिक करे पुकार , इकठ्ठे हो लो प्रेरक यार।
अहंकार तुम अपना छोडो ,प्रेरक हितो की अब तुम सोचो।
नींद से सरकार को जगाना है ,अपने अधिकारों को पाना है।
प्रेरक संघ का साथ निभाओ प्रेरक आंदोलन को सफल बनाओ।
.......................................👍👍👍👍👍👍👍👍👍👊👊👊👊👊👊👊👊👊
इस मैसेज को इतना ज्यादा शेयर करो जिससे सोए हुए प्रेरक जाग जाए और 1857 की क्रान्ति की तरह प्रेरक आंदोलन की क्रांति शुरू हो जाए।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
निवेदनकर्ता --------भगवत कौशिक प्रदेशाध्यक्ष ,प्रेरक संघ हरियाणा एंव
संयोजक, प्रेरक संघ इण्डिया

कागजों में ही चल रहा है साक्षर भारत मिशन

कागजों में ही चल रहा है साक्षर भारत मिशन
साक्षर भारत मिशन अभियान में बडे पैमाने पर गडबडियां -------- 24 नवम्बर।-बुनियादी शिक्षा से महरुम वयस्कों में साक्षरता की अलख जगाने वाला साक्षर भारत मिशन अभियान अब केवल कागजों में ही सिमट कर यह गया है।अन्य विभागों की तरह इस मिशन पर भी भ्रष्टाचार की काली छाया पड गई है। मिशन के तहत अब तक प्रेरको दवारा 6 बार बुनियादी साक्षरता परीक्षा का आयोजन करवाया जा चुका है,लेकिन लर्नर किट(अध्ययन सामग्री) केवल एक बार ही उपलब्ध करवाई गई।ऐसे में बिना अध्ययन सामग्री साक्षरता केसे बढेगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। राज्य मे योजना शुरू हुए 3 साल बीतने के बाद भी अब तक गांवों मे स्थापित लोक शिक्षा केंद्रों मे संसाधन नहीं पहुंचे है।न तो किताबें, मैप ,चार्ट सहित अन्य पाठ्य सामग्री दी गई और न ही प्रेरको को साईकिल मिला है।केन्द्र सरकार के प्रावधानों के तहत शिक्षा केंद्रों में किताबें ,मैगजीन व अन्य पाठ्य सामग्री के लिए 5 हजार रूपये ,प्रोग्राम सपोर्ट के लिए 12500 रुपये ,केरोसिन व लाइटिंग सामग्री के लिए2500 रुपये, बिजली-पानी ,मेंटनेंस व अन्य खर्च के लिए 4500रूपये तथा आफिस खर्च के लिए 2500 रूपये प्रतिवर्ष निर्धारित किए गए।लेकिन लोक शिक्षा केंद्रों को अब तक इनमें से फूटी कौडी भी हासिल नहीं हुई है।ऐसे मे सवाल यह उठता है कि सरकार दवारा निरक्षरता खत्म करने के लिए चलाया गया यह अभियान कैसे पूरा होगा। प्रदेश मे अगस्त 2012मे दस जिलों के 62 ब्लाकों के प्रत्येक गावों में लोक शिक्षा केंद्र स्थापित कर दो प्रेरकों की नियुक्ति की गई।प्रावधानों मे यह तय किया गया कि शिक्षा केंद्रों के बेहतर संचालन के लिए वहां सभी जरुरी संसाधन मुहैया कराए जाएगें।प्रत्येक प्रेरक का मानदेय 2000 रूपये प्रति माह सहित प्रत्येक शिक्षा केंद्र पर 75000 वार्षिक खर्च निर्धारित किया गया।अन्य खर्च तो दूर कि बात है प्रतिदिन केंद्र पर 6 घंटे कार्य करने वाले प्रेरकों को पिछले 7 माह से मानदेय नहीं मिल पाया है।ऐसे मे मिशन की सार्थकता का अंदेशा स्वयं लगाया जा सकता है।इस संबंध मे प्रेरक संघ हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष भगवत कौशिक का कहना है कि जब प्रेरको दवारा बिना अध्ययन सामग्री परीक्षा करवाने से मना किया जाता है तो अधिकारियों दवारा उन्हे हटा कर दूसरों को लगा देने की धमकी दी जाती है।राज्य साक्षरता प्राधिकरण मिशन आथारिटि के अधिकारी प्रेरको पर दबाव डालकर केवल लोगो को कागजों मे ही साक्षर बनाने का काम कर रहे है।इस संबंध में पीएम व सीएम को भी अवगत करवाया जा चुका है लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।इसी नकारात्मक रवैये के कारण प्रेरको को 8 माह से मानदेय का एक भी पैसा नहीं मिल पाया है। हरियाणा सरकार प्रेरको का आर्थिक एवं मानसिक शोषण कर रही है ।भगवत कौशिक के अनुसार संसाधनों के नाम पर शिक्षा केंद्रो को एक मेज, दो कुर्सी, एक दरी,दो अलमारी उपलब्ध करवाई गई है जो निम्न गुणवत्ता की है।

BHAGWAT Kaushik
M.no.9812191860

HARYANA FEMALE LITERACY

Haryana shows no interest in adult female literacyNot a penny from Rs 1.2-crore Central grant used last yearAditi Tandon
Tribune News Service
New Delhi, January 15
Already in the dock for the lowest gender ratio and honour killings perpetuated by the khap panchayats, Haryana is now displaying acute official apathy towards female literacy, a cause which the UPA Government espoused in September 2009 when the Prime Minister launched the Sakshar Bharat Mission to educate 60 million illiterate women (and 10 million illiterate men) across India by March 31, 2012.
Fifteen months on, Haryana has not rolled out the programme or spent a paise from the Rs 1.20 crore grant that the Centre released to the state.
Documents accessed by The Tribune show the HRD Ministry approved Rs 11 crore adult literacy projects until 2012 for Haryana. Of this, Rs 1.20 crore was released in the first year to educate 1.25 lakh non-literates in Karnal which was chosen because of its continuing literacy programme and was assumingly ready to absorb the new funds and set an example for other districts.
The districts chosen for the mission’s initial implementation across India were the ones with existing adult literacy infrastructure.
But Haryana has failed to roll out the programme even in Karnal. “Haryana was always arguing that more of its districts should have been included. But the state hasn’t managed to implement the scheme even in Karnal.We have now sanctioned the programme funds for Kaithal, Jind, Fatehabad and Hisar. But we are not sure of Haryana’s response. So far, it has been cold,” HRD Ministry sources told The Tribune, adding that Haryana had not been attending the mission’s review meetings.
Repeated pursuance (letters) by HRD Minister Kapil Sibal and Minister of State D Purandeshwari has also not helped. All this when the state’s adult female literacy rate averages 47.45 per cent with certain districts posting the worse percentages- Kaithal 36.50; Jind 37.28; Fatehabad 37.59; Hisar 41.11; Sirsa 41.31; Bhiwani 42.26; Guagaon 42.36 and Mahendragarh 43.11. The gender gap in adult literacy in the state is a whopping 28 pc points and in the SC category 31 per cent points.
So exasperated is the HRD Ministry with Haryana’s indifference to the matter that it has now pulled out staff from the State Resource Centre (these centres are 100 per cent centrally funded to promote adult literacy) and redeployed it in the Northeast where there’s interest for the programme.
Haryana’s performance under the Sakshar Bharat scheme is behind Bihar, Jharkhand and Chhattisgarh in implementation. Since the project was launched in January 2010, Haryana has not reconstituted the State Literacy Mission or conducted a survey of non-literates to ascertain the new numbers.
It has not established adult education centres at the panchayat level or opened subsidiary accounts in panchayats (though these have been opened at the state, district and block level).
The state has not authorised anyone to use the central funds, resulting in zero utilisation of money, nor has it procured teaching material approved by the Centre way back in September 2009.
Principal Secretary, Education, Sureena Rajan said the programme had not been rolled out because the State Literacy Mission had not been reconstituted as laid down by the Sakshar Bharat Mission.
“The programme requires the states to nominate certain non-official members to the reconstituted state missions. So far as ex-officio members go, there’s no issue. But the non-official members’ issue is to be sorted out.
“As the Mission is not there, no one can be authorised to use the funds though awareness programmes have been conducted. Also, the project was introduced in just one district. Now that we have four more districts, we will give the programme the desired push.”
Haryana plans to reconstitute an “altered” state literacy mission (without non-official members) and seek HRD Ministry approval afresh. Says DR Chowdhry, Member, Haryana Administrative Reforms Commission:
“Haryana lacks the political will for women’s empowerment. This disinclination is evident across all sections of Haryana’s political and official circles”.

Sakshar Mahila Samooh

6000 Sakshar Mahila Samooh formed in Haryana Published: Saturday, June 30, 2007, 21:11 [IST] Give your rating: Chandigarh, June 30 (UNI) Haryana Government has earmarked Rs three crore for the implementation of Sakshar Mahila Samooh (SMS) scheme during the current financial year, Haryana Women and Child Development Minister Kartar Devi said here today that about 6000 SMS (group of educated women) had already been formed under the programme, which has been included in the State Plan of Integrated Child Development Service Scheme. She said that the Government had formed SMS in villages to create awareness among the people on key issues like sex ratio, literacy, health and nutrition education, opportunities for economic empowerment of women, hygiene, sanitation and environment. The Minister said the SMS scheme also aimed at providing necessary resource support to the Gram Panchayat and its sub committee for effective discharge of functions assigned to them. The sub-committees had enrolled all educated women in the villages who were at least matriculate including school going girls at plus two level and former members of Balika Mandals under Kishori Shakti Yojna. The Minister said that UNICEF had agreed to provide technical support to organise workshop for participants from social sector, training of frontline workers and review of implementation of SMS programme. It also agreed to provide an IT application of the SMS Child Tracking System, identify critical issues of intervention in various social sector areas, formulation of a strategy to address issues of female foeticide, explore private sector participation for increasing resources availability, analysing the conditions of women and children and monitoring the child rights convention. UNI

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